स्व. श्री हरिमोहन झा (१९०८-१९८४)
जन्म १८ सितम्बर १९०८ ई. ग्राम+पो.- कुमर बाजितपुर, जिला- वैशाली, बिहार। पिता- स्वर्गीय पं. जनार्दन झा “जनसीदन” मैथिलीक अतिरिक्त हिन्दीक लब्धप्रतिष्ठ द्विवेदीयुगीन कवि-साहित्यकार।
शिक्षा- दर्शनशास्त्रमे एम.ए.- १९३२, बिहार-उड़ीसामे सर्वोच्च स्थान लेल स्वर्णपदक प्राप्त। सन् १९३३ सँ बी.एन.कॉलेज पटनामे व्याख्याता, पटना कॉलेजमे १९४८ ई.सँ प्राध्यापक, सन् १९५३ सँ पटना विश्वविद्यालयमे प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष आऽ सन् १९७० सँ १९७५ धरि यू.जी.सी. रिसर्च प्रोफेसर रहलाह।
हिनकर मैथिली कृति १९३३ मे “कन्यादान” (उपन्यास), १९४३ मे “द्विरागमन”(उपन्यास), १९४५ मे “प्रणम्य देवता” (कथा-संग्रह), १९४९ मे “रंगशाला”(कथा-संग्रह), १९६० मे “चर्चरी”(कथा-संग्रह) आऽ १९४८ ई. मे “खट्टर ककाक तरंग” (व्यंग्य) अछि।
“एकादशी” (कथा-संग्रह)क दोसर संस्करण १९८७ ए. मे आयल जाहिमे ग्रेजुअट पुतोहुक बदलाने “द्वादश निदान” सम्मिलित कएल गेल जे पहिने “मिथिला मिहिर”मे छपल छल मुदा पहिलुका कोनो संग्रहमे नहि आएल छल। श्री रमानाथ झाक अनुरोधपर लिखल गेल “बाबाक संस्कार” सेहो एहि संग्रहमे अछि। आऽ हुनकर “खट्टर काका” हिन्दीमे सेहो १९७१ ई. मे पुस्तकाकार आएल। एकर अतिरिक्त हिनकक स्फुट प्रकाशित-लिखित पद्यक संग्रक “हरिमोहन झा रचनावली खण्ड ४ (कविता)” एहि नामसँ १९९९ ई.मे छपल आऽ हिनकर आत्मचरित “जीवन-यात्रा” १९८४ ई.मे छपल।
हरिमोहन बाबूक “जीवन यात्रा” एकमात्र पोथी छल जे मैथिली अकादमी द्वारा प्रकाशित भेल छल आऽ एहि ग्रंथपर हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कार १९८५ ई. मे मृत्योपरान्त देल गेलन्हि। साहित्य अकादमीसँ १९९९ ई. मे “बीछल कथा” नामसँ श्री राजमोहन झा आऽ श्री सुभाष चन्द्र यादव द्वारा चयनित हिनकर कथा सभक संग्रह प्रकाशित कएल गेल, एहि संग्रहमे किछु कथा एहनो अछि जे हिनकर एखन धरिक कोनो पुरान संग्रहमे सम्मिलित नहि छल।
हिनकर अनेक रचना हिन्दी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, तेलुगु आदि भाषामे अनुवादित भेल। हिन्दीमे “न्याय दर्शन”, “वैशेषिक दर्शन”, “तर्कशास्त्र”(निगमन), दत्त-चटर्जीक “भारतीय दर्शनक” अंग्रेजीसँ हिन्दी अनुवादक संग हिनकर सम्पादित “दार्शनिक विवेचनाएँ” आदि ग्रन्थ प्रकाशित अछि। अंग्रेजीमे हिनकर शोध ग्रंथ अछि- “ट्रेन्ड्स ऑफ लिंग्विस्टिक एनेलिसिस इन इंडियन फिलोसोफी”।
प्राचीन युगमे विद्यापति मैथिली काव्यकेँ उत्कर्षक जाहि उच्च शिखरपर आसीन कएलनि, हरिमोहन झा आधुनिक मैथिली गद्यकेँ ताहि स्थानपर पहुँचा देलनि। हास्य व्यंग्यपूर्णशैलीमे सामाजिक-धार्मिक रूढ़ि, अंधविश्वास आऽ पाखण्डपर चोट हिनकर लेखनक अन्यतम वैशिष्ट्य रहलनि। मैथिलीमे आइयो सर्वाधिक कीनल आऽ पढ़ल जायबला पोथी सभ हिनकहि छनि।
हरिमोहन झा समग्र
हरिमोहन झा जीक समग्र रचनाक एक बेर सिंहावलोकन कएल जाए।
कथा-एकांकी
१. १.अयाची मिश्र (एकाङ्की) २. मंडन मिश्र (एकाङ्की) ३. महाराज विजय (एकाङ्की)४. बौआक दाम (एकाङ्की)५.रेलक झगड़ा (एकाङ्की) ६. संगठनक समस्या- पत्र शैली ७. “रसमयी”क ग्राहक – पत्र-शैली ८.पाँच पत्र –पत्र-शैली ९. दलानपरक गप्प१०.घूरपरक गप्प११.पोखड़िपरक गप्प १२. चौपाड़िपरक गप्प १३.धर्मशास्त्राचार्य १४.ज्योतिषाचार्य १५.पंडितजी
१६.कविजी १७.परिवर्तन १८.युगक धर्म १९.महारानीक रहस्य २०.सात रंगक देवी २१.नौ लाखक गप्प २२.रंगशाला २३.अँचारक पातिल २४.चिकित्साक चक्र २५.रेशमी दोलाइ २६.धोखा २७.प्रेसक लीला २८.देवीजीक संस्कार २९.एहि बाटे अबै छथि सुरसरि धार ३०. कन्याक जीवन ३१. रेलक अनुभव ३२. ग्रामसेविका ३३. मर्यादाक भंग ३४. तिरहुताम ३५.टोटमा ३६.तीर्थयात्रा ३७.अलंकार-शिक्षा ३८.बाबाक संस्कार ३९.द्वादश निदान ४०.ग्रेजुएट पुतोहु ४१.ब्रह्माक शाप ४२.आदर्श भोजन ४३.सासुरक चिन्ह ४४.कालीबाड़ीक चोर ४५.कालाजारक उपचार४६.विनिमय ४७.दरोगाजीक मोंछ ४८.शास्त्रार्थ ४९.विकट पाहुन ५०.आदर्श कुटुम्ब ५१.साझी आश्रम ५२.घरजमाय५३.भदेशक नमूना ५४.बीमाक एजेन्ट ५५.अंगरेजिया बाबू
पद्य
१.सनातनी बाबा ओ कलियुगी सुधारक २.कन्याक नीलामी डाक ३.मिथिलाक मिहिर सँ ४.ढाला झा
५.टी. पार्टी ६.बुचकुन झा ७.पंडित लोकनि सँ ८.निरसन मामा ९.आगि १०.अङरेजिया लड़कीक समदाउनि
११.गरीबनीक बारहमासा १२.श्री यात्रीजीक प्रति : मैथिलीक उक्ति १३.सौराठ १४.अलगी १५.अशोक-वाटिकामे
१६.पटना-स्तोत्र १७.श्रद्धेय अमरनाथ झाक प्रति श्रद्धांजलि
१८.हिन्दी ओ मैथिली १९.बुचकुन बाबाक चिट्ठी
२०.जगमग-जगमग दीप जराऊ २१.कलकत्ता गेला उत्तर
२२.अकाल २३.कलकत्ता हमरा बड़ पसन्द २४.सलगमक खण्ड २५.बूढ़ानाथ २६.नवकी पीढ़ीसँ २७.पंडित ओ मेम
२८.पंडित-विलाप २९.गंगाक घाटपर ३०.समयक चक्र
३१.महगी-माहात्म्य ३२.रस-निमन्त्रण ३३.अकविताक प्रति : कविताक उक्ति ३४.हम पाहुन छी ३५.अनागत प्रेयसीसँ
३६.मत्स्य-तीर्थ ३७.मिष्टान्न ३८.हे राजकमल ३९.घटक सौं ४०.पंडितजी सौं ४१.कनियाँक समस्या ४२.मुक्तक
४३.गजल ४४.मातृभूमि ४५.नारी-वन्दना ४६.हे दुलही के माय ४७.मात्रूभूमि वन्दना ४८.चन्द्रमाक मृत्यु ४९.मिथिला वन्दना ५०.कवि हे! आब कोदारि धरु ५१.महगी ५२.नव पराती ५३.चालिस आ चौहत्तरि
५४.प्रयोगवादी कविता ५५.स्व. ललित नारायण मिश्रक स्मृतिमे ५६.उद्गार ५७.अन्तिम सत्य ५८.मधुर भाषा मैथिली छी ५९.छगुन्ता ६०.विद्यापति पर्व महान हमर
६१.आठ संकल्प ६२.घूटर काका ६३.वनगाम-महिषी स्मृति
६४.मैथिली-वन्दना ६५.हे मातृभूमि केर माटि
६६.कहू की औ बाबू ६७.कश्मीर हमर थीक ६८.मंगल प्रभात ६९.बुचकुन बाबाक स्वप्न ७०.जय विद्यापति
७१.शुभांशसा ७२.पारिचारिका स्तोत्र ७३.मनचन बाबा
७४.एहि बेरक फगुआ ७५.परतारु जुनि ७६.हे मजूर! कष्ट लखि अहाँक (कविजी: प्रणम्य देवता) ७७.हे हे मजूर! (कविजी: प्रणम्य देवता) ७८.अबि! अनन्त कोमल करुणे! (कविजी: प्रणम्य देवता) ७९.हे वीर! हलायुध धर खड्ग(कविजी: प्रणम्य देवता) ८०.अयि! प्रचंड चंडिके! (कविजी: प्रणम्य देवता) ८१.झाँसीक रानी(कविजी: प्रणम्य देवता)
८२.हे प्रगतिशील महिला समाज(कविजी: प्रणम्य देवता)
८३.प्रिये! हम जाइत छी ओहि पार(कविजी: प्रणम्य देवता)
८४.धन्य-धन्य मातृभूमि (अयाची मिश्र : चर्चरी)
८५.धन्य ई मिथिलेशक दरबार(अयाची मिश्र : चर्चरी)
८६.हे डीह! अमर कीर्तिक निधान! (अयाची मिश्र : चर्चरी)
८७.हरिहर जन्म किएक लेल (माछक महत्व : खट्टर ककाक तरंग)
८८.केहन भेल अन्हेर(खट्टर ककाक टटका गप्प : खट्टर ककाक तरंग)
खट्टर ककाक तरंग (कथा-व्यंग्य)
कन्यादान (उपन्यास)
द्विरागमन (उपन्यास)
जीवनयात्रा (आत्मकथा)
कन्यादानक समर्पण- जे समाज कन्या कैं जड़ पदार्थवत् दान कय देबा मे कुंठित नहि होइत छथि, जाहि समाजक सूत्रधार लोकनि बालक कैं पढ़ैबाक पाछाँ हजारक हजार पानि मे बहबैत छथि और कन्याक हेतु चारि कैञ्चाक सिलेटो कीनब आवश्यक नहि बुझैत छथि, जाहि समाजमे बी.ए. पास पतिक जीवन-संगिनी ए बी पर्यन्त नहि जनैत छथिन्ह, जाहि समाज कैं दाम्पत्य-जीवनक गाड़ी मे सरकसिया घोड़ाक संग निरीह बाछी कैं जोतैत कनेको ममता नहि लगैत छन्हि, ताही समाजक महारथी लोकनिक कर-कुलिश मे ई पुस्तक सविनय, सानुरोध ओ सभय समर्पित।
प्रणम्य देवताक समर्पण- आइ सँ सात वर्ष पूर्व जे कार्तिकी पूर्णिमाक करार पर हमरा सँ पैंच लऽ गेलाह और तहियासँ पुनः कहियो दर्शन देबाक कृपा नहि कैलन्हि, जनिक चिर-स्मरणीय कीर्ति-कलाप प्रथमे कथा मे विशद रूप सँ वर्णित छैन्ह, जे “प्रणम्य देवता” क मध्य सर्वश्रेष्ठ आसन पर अधिकार जमा सकैत छथि, जनिक वन्दनीय बन्धुवर्ग ई पुस्तक देखि विनु मङनहि अपन स्वत्व स्थापित कय लऽ सकैत छथि, तेहन प्रमुख चरित-नायक, विकट पाहुन भीमेन्द्रनाथ क सुदृढ़ विशाल मुष्टिमे ई विचित्र-चरित्र-पूर्ण पोथी विवशतापूर्वक अर्पित छैन्ह!
खट्टर ककाक तरंगक समर्पण- जे भंगक तरंगमे काव्य-शास्त्र-विनोदक धारा बहा दैत छथि; जनिक प्रवाहमे थोड़ेक कालक हेतु वेद-पुराण, धर्मशास्त्र, सभटा भसिया जाइत अछि; जे बात-बातमे अद्भुत रस ओ चमत्कारक चाशनी घोरि दैत छथि; जे मर्मस्पर्षी व्यंग्य द्वारा लोकक अन्तस्तल मे पहुँचि गुदगुदी लगा दैत छथि; तेहन चिर आनन्दमूर्ति, परिहास-प्रिय खट्टर कका कैं- त्व्दीयं वस्तु पितृव्य! तुभ्यमेव समर्पितम्।
रंगशालाक समर्पण- जे अक्षययौवना नटी एहि अनादि अनन्त रंगशालाक प्रवर्तिका थिकीह, जे मनोहर वीणा-वादिनी सम्पूर्ण चराचर विश्वकैं अपना आंगुरक अग्रभाग पर नचा रहल छथि, जे रहस्यमयी अपन मोहिनी लीलाक झलक देखाय ककरो स्पर्श नहि करय दैत छथिन्ह, जे कल्पनाक रंगीन पाँखि पर आबि कलाकारक कलामे रसक संचार करैत छथिन्ह, तेहन आश्चर्यकारिणी चिरसुन्दरी त्रैलोक्य-विजयिनी माया देवी कैं।
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